Friday 16 November 2012

मकडू भेड़िया और गबरू शेर



एक वन में गबरू नामक तेजतर्रार शेर रहता था। सियार पंजू और भेड़िया मकडू उसके आज्ञाकारी सेवक थे। दुर्भाग्यवश एक दिन शेर ने एक ऊंटनी का शिकार किया। जो गर्भवती थी। शेर ने जैसे ही उसका पेट फाड़ा, पेट फटते ही उसका बच्चा बाहर निकल आया। 

बच्चे को देखकर गबरू शेर का दिल भर आया। उसके मन में ऊंटनी के बच्चे के प्रति स्नेह, प्यार-दुलार उत्पन्न हुआ तो वह बच्चे को अपने घर ले आया और उसका नाम शंकु रख उसका पालन-पोषण करने लगा। समय जैसे-जैसे बीतता गया वैसे  गुजरते वक्त के साथ-साथ ऊंटनी का बच्चा हष्टपुष्‍ट जवान हो गया।
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फिर एक दिन शाम के वक्त संयोगवश शेर का हाथी से सामना हो गया। गुर्राए हाथी ने अपने दांतों से प्रहार कर शेर को इतना घायल कर दिया कि वह उठने-बैठने, यहां तक कि चलने-फिरने और शिकार करने में भी असमर्थ हो गया। 

इस तरह कई दिन बीत गए। भूख से व्याकुल शेर ने एक दिन अपने सेवकों से कहा - मेरे प्यारे साथियों..., वन में जाकर किसी ऐसे पशु को खोज लाओ, जिसका शिकार मैं इस असहाय अवस्था में भी कर सकूं।

अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करते हुए सेवक वन के एक कोने से दूसरे कोने तक भटकते रहे, परंतु उन्हें ऐसा कोई पशु नहीं मिला, जिसका शेर बैठे-बैठे ही शिकार कर सके। 

सेवक निराश होकर लौटे, और अपनी असफलता की कहानी शेर को सुनाई।

दूसरे दिन मकडू ने पंजू से कहा - अगर इस प्रकार भूखे रहें, तो एक दिन हम सभी मर जाएंगे।

मेरे दिमाग में एक योजना है, अगर हमारे स्वामी शेर उसे कार्यरूप देने को तैयार हो जाए तो...। उसने आगे कहा - यदि शंकु का वध कर दिया जाए, तो कुछ दिनों के भोजन की व्यवस्था हो सकती है।

अपने साथी की योजना का समर्थन करते हुए पंजू ने कहा - तुम ठीक कहते हो मकडू भाई, इसके सिवा हमारे पास कोई और चारा भी तो नहीं है। तब तक शायद हमारे स्वामी भी पुन: स्वस्थ होकर शिकार करने लग जाए। 

लेकिन...। इतना कह कर मकडू के चेहरे पर गंभीरता छा गई।
पंजू बोला - लेकिन क्या? आपका सुझाव तो उत्तम 
है...। 
मकडू ने निराश स्वर में कहा - यहां स्थिति तो हमारे अनुकूल दिखाई दे रही है, मगर शेर ने शंकु का वध करने से इनकार कर दिया तो...। 
पंजू बोला - इस बात को तो मैं भी अच्छी प्रकार समझता हूं, लेकिन परिस्थिति भूखे-प्यासे को सबकुछ करने पर विवश कर देती है। 
शिक्षा
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हमारे साथ रह रहे दोस्तों पर आंख बंद करके भरोसा कभी भी ना करें।
इस प्रकार सोच-विचार करने के बाद दोनों शेर के पास गए और बोले - राजन...! यदि आपको अपने प्राण प्यारे है तो शंकु के वध का प्रस्ताव स्वीकार कर लीजिए, वर्ना भूखे-प्यासे रहने के कारण आप और हम दोनों भी यमलोक का प्रस्थान कर जाएंगे।

शेर ने बेहद धीमे स्वर में कहा - यदि शंकु स्वेच्छा से आत्मसमर्पण करने को तैयार होता है तो मैं उसके वध के प्रस्ताव पर विचार कर सकता हूं। अगर वह ऐसा नहीं करना चाहेगा तो मैं भूख से तड़प-तड़पकर मर जाऊंगा, लेकिन उसका वध नहीं करूंगा।

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शेर की अनुमति मिलते ही दोनों के चेहरे पर लालच भरी मुस्कान दौड़ गई। वे शंकु के पास गए और चिंतित मुद्रा में कहने लगे - देखो मित्र! हमारे स्वामी कई दिनों से भोजन न मिलने के कारण इतने असमर्थ हो गए है कि वह उठ-बैठ भी नहीं सकते। हम स्वामी के हित की सोच कर ही तुम्हें आत्मसमर्पण के लिए कह रहे हैं। 

शंकु ने सहज भाव से उत्तर दिया - बंधु! अगर स्वामी के लिए मैं कुछ भी कर सका तो मैं अपने आपको भाग्यशाली समझूंगा। 
मकडू ने पुन: कहा - इस समय स्वामी के प्राणों पर संकट आ पड़ा है। तुम अपने शरीर को समर्पित करके स्वामी के प्राणों की रक्षा कर सकते हो। 
शंकु ने गर्दन हिलाते हुए अपनी स्वीकृति दी और कहा - मैं हर प्रकार से तैयार हूं। फिर दोनों शंकु को शेर के पास ले गए।

शेर के पास पहुंच कर शंकु ने अपने निवेदन में कहा - स्वामी! मैं अपने धर्म का पालन करने के लिए तैयार हूं। यह जीवन आपका ही दिया हुआ है। आप मेरे प्राण को लेकर अपनी और अपने सेवकों के प्राणों की रक्षा करें।

शंकु की स्वीकृति मिलते ही दोनों ने उस ऊंट को फाड़ डाला। शंकु के वध के बाद शेर ने मकडू से कहा- मैं नदी में स्नान करके आता हूं, तब तक तुम इस मांस की देखभाल करना। 

शेर के जाते ही मकडू सोच में पड़ गया, कि कोई ऐसी युक्ति निकाली जाए, जिससे सारा मांस मुझे अकेले को ही मिल जाए। 

WD
उसने कुछ देर सोचने के बाद अपने साथी पंजू से बोला- मित्र, तुम तो बहुत ज्यादा भूख से पीड़ित नजर आ रहे हो इसलिए जब तक स्वामी लौट कर नहीं आते, तुम इस बढ़िया मांस का आनंद प्राप्त कर लो। स्वामी के आने पर मैं उनसे निपट लूंगा।

भूखे पंजू ने जैसे ही मांस खाने के लिए मुंह खोला मकडू उस पर टूट पड़ा और उसे भी फाड़ डाला। फिर मकडू दोनों के मांस को लेकर वन में दूसरी ओर चला गया। शेर ने आकर दोनों को ढूंढा मगर कोई भी नहीं मिला। शेर को अपने ‍किए पर काफी पछतावा हुआ और दुखी मन से उसने अपने प्राण त्याग दिए।

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